भोपाल:- मध्य प्रदेश में 3 सालों से नगरी निकाय एवं ग्राम पंचायतों के चुनाव की प्रतीक्षा कर रहे उम्मीदवारों को अभी और लंबा इंतजार करना पड़ सकता है। भोपाली सूत्रों की माने तो सरकार अभी किसी भी तरह के निकाय एवं पंचायत चुनाव कराने के पक्ष में नहीं है सरकार चाहती है कि 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव के बाद ही प्रदेश में निकाय एवं पंचायत चुनाव हो यही कारण है कि पंचमढ़ी में सरकार के हुए हाई लेवल चिंतन शिविर में निकाय एवं पंचायत चुनाव को लेकर कोई चर्चा नहीं हुई सिर्फ और सिर्फ रणनीति बनी है तो विधानसभा चुनाव को लेकर ही बनी है। पहले कोरोना काल और अब महंगाई ऐसे मुद्दे हैं जिस पर सरकार स्थानीय चुनाव कराने की पक्षधर नहीं है। एक और मसला ये भी है कि ये चुनाव रिजर्वेशन, रोटेशन और परिसीमन की राजनीति में फंस गए हैं। OBC रिजर्वेशन का सरकार का दांव पहले ही सुप्रीम कोर्ट में उल्टा पड़ चुका है। राजनीतिक जानकार मानते हैं कि अभी पंचायत-निकाय चुनाव में लंबा इंतज़ार करना पड़ सकता है।

यह भी पढ़ें - अवैध अतिक्रमण पर चला बुलडोजर, एक घंटे में मुक्त कराई 10 करोड़ की जमीन
सरकार द्वारा सरपंचों का कार्यकाल तो एडजस्ट कर दिया गया है लेकिन प्रदेश में निकाय को सरकार के प्रशासक चला रहे हैं। ऐसे में सरकार के कानूनी दांव-पेंच से बाहर आने के बाद चुनाव प्रक्रिया शुरू होने में एक से डेढ़ साल का वक्त लगेगा। ऐसे में दोनों चुनाव कोर्ट के फैसले के बाद ही होंगे। हालांकि सरकार भी यही चाहती है कि अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले स्थानीय निकायों के चुनाव न हों। विधानसभा चुनाव में ओबीसी बीजेपी के लिए बड़ा मुद्दा होगा। यही वजह है कि सरकार 27% ओबीसी आरक्षण लागू करने की कवायद में जुटी है। विधानसभा के बजट सत्र के दौरान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 14 मार्च को बयान दिया की ""ओबीसी आरक्षण के साथ ही पंचायत चुनाव हों, इस पर हमने कोई कसर नहीं छोड़ी बीजेपी सरकार का यह फैसला है कि पंचायत चुनाव ओबीसी आरक्षण के साथ ही होंगे"" इससे स्पष्ट है कि यह सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद ही प्रदेश में चुनाव होंगे।
यह भी पढ़ें - रेलवे वरिष्ठ वाणिज्य प्रबंधक अजय पाल 20 हजार की रिश्वत लेते रंगे हाथों गिरफ्तार, भरतपुर एसीबी की कोटा डीआरएम ऑफिस में कार्रवाई

वही मामले को लेकर पूर्व में सुप्रीम कोर्ट ने मप्र सरकार को फटकार लगाते हुए कहा था कि ट्रिपल टेस्ट का पालन किए बिना आरक्षण के फैसले को स्वीकार नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य निर्वाचन आयोग से कहा कि कानून के दायरे में ही रहकर चुनाव करवाएं। OBC के लिए निर्धारित सीटों को सामान्य सीटों में तब्दील करने की अधिसूचना जारी करें। अदालत ने कहा कि कानून का पालन नहीं होगा, तो चुनाव रद्द किया जा सकता है। वही राज्य निर्वाचन आयोग के मुताबिक भले ही चुनाव प्रक्रिया पर काम जारी है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन होने में वक्त लगेगा। सरकार 27% सीटें ओबीसी के लिए रिजर्व करना चाहती है। ऐसे में आरक्षण की तय सीमा 50% से ज्यादा के लिए सरकार को कोर्ट में आंकड़े प्रस्तुत करने होंगे। इसके मद्देनजर सरकार ने अन्य पिछड़ा वर्ग विभाग के माध्यम से ओबीसी मतदाताओं की गिनती कराने का काम शुरू किया है। लेकिन इसमें भी साल डेढ़ साल का वक्त लगेगा….।
प्रदेश में कमजोर विपक्ष की भूमिका निभाने वाली कांग्रेस भी अभी किसी भी तरह के चुनाव लड़ने की तैयारी में नहीं है। इसलिए लगभग तय माना जा रहा है कि सरकार की मंशा अनुरूप 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव के बाद ही होंगे प्रदेश में निकाय एवं पंचायत चुनाव….?